
कद घटने की वजह बना है मानेसर, ये पता है गहलोत को, सचिन का धैर्य काबिले तारीफ तो है, उसकी अपनी क्रेडिट है
- गहलोत फिर से जगह बनाने के प्रयास में
अभिषेक आचार्य
RNE Special.
पूर्व मुख्यमंत्री को रह रहकर मानेसर की याद आ ही जाती है। सचिन पायलट मानेसर को याद नहीं रखना चाहते, वे उसे भूल गये। जबकि गहलोत चाहकर भी मानेसर को भूल नहीं पा रहे। मानेसर गहलोत के लिए कई मायने में पूरे राजनीतिक जीवन में खास बना रहेगा।
अभी जब पीसीसी में एक श्रद्धांजलि सभा थी तो उनको मानेसर याद आ गया। वे भाषण में बोल पड़े कि पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा मानेसर की देन है। अपरोक्ष रूप से एक बार फिर उन्होंने पायलट पर कटाक्ष किया।
मानेसर प्रकरण ये है:
पहले बात गहलोत व मानेसर के जुड़ाव की। गहलोत राज्य में सीएम थे और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कुछ विधायकों के साथ बगावत की। अपने समर्थक विधायकों को लेकर पायलट मानेसर गये थे। तब गहलोत का आरोप था कि वे कांग्रेस सरकार गिराना चाहते थे, भाजपा के साथ मिलकर। वहीं सचिन का कहना था कि वे पार्टी नेतृत्त्व को ये बताने गये थे कि हम गहलोत के नेतृत्त्व में काम नहीं कर सकते। मगर गहलोत ने इसे बगावत बताया और अपनी सरकार बचाने के लिए बाड़ाबंदी की।
सरकार बनी रही। गहलोत सीएम रहे। आलाकमान तक पायलट की बात पहुंची तो बीच का रास्ता निकालने का प्रयास हुआ। ठोस निर्णय के साथ आलाकमान ने अभी के पार्टी अध्यक्ष खड़गे व अजय माकन को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा। विधायक दल की बैठक बुलाई गई। मगर गहलोत समर्थक विधायक बैठक में नहीं आये। अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी को दे आये।
आलाकमान पहली बार लज्जित हुआ:
आलाकमान के पर्यवेक्षकों को पहली बार विधायक दल की बैठक किये बिना बैरंग लौटना पड़ा। केंद्रीय नेतृत्त्व नाराज हुआ और गहलोत की छवि पर पहली बार असर पड़ा। पार्टी गहलोत को अध्यक्ष बनाना चाहती थी, मगर गहलोत सीएम ही रहना चाहते थे। बस, यहीं से मानेसर गहलोत पर हावी हो गया।
पायलट को धैर्य का फल मिला:
पायलट की चुप्पी और गहलोत खेमे की बयानबाजी ने आलाकमान की नजर में पायलट का महत्त्व बढ़ा दिया।
पायलट को पार्टी का महासचिव बनाया गया। पार्टी की सर्वोच्च बॉडी सीडब्ल्यूसी का सदस्य बनाया गया। छत्तीसगढ़ राज्य का प्रभारी बनाया गया और चुनावों का स्टार कम्पेनर बनाया गया। गहलोत के पास पहले ये सब जिम्मेदारियां हुआ करती थी। इस कारण मानेसर अब भी गहलोत को याद आता है।
मानेसर ने सब बदल दिया:
राजस्थान में पहले अशोक गहलोत की ही तूती बोलती थी, मगर अब बराबरी में पायलट खड़े है। कुछ मायनों में आगे खड़े है। वहीं डोटासरा भी एक जांबाज नेता के रूप में उभरे है। इस तरह अब मानेसर गहलोत को याद आता है तो गलत भी नहीं।